दिल कहां है?
धडकने कहां है?
दिल टूटा हुआ है।
सालों के जुल्मों सितम से ,
धड़कनों का शोर कहां है?
पता नहीं खो गया है कहीं,
ख्वाहिशों के बाजार में मिलती,
भी नही इस दुनिया के शोर शराबे में…
बस यूंही
मै खाली थी,
तुम्हारे मिलने से पहले,
मै खाली ही हूं,
तुम्हारे जाने के बाद,
जिंदगी खाली थी,
पहले भी ,
जिंदगी खाली है ,
अब भी ,
यूंही बस यूंही सब खोता चला जाता है।
हमेशा हमेशा के लिए…
#roma
दुःख
दुःख इस बात का नही की दुःख है।
दुःख इस बात का है की सब अपने ही दुःख देते हैं।
जो जितना करीब होता है। वो उतना ही दुखी कर देता है।
वो तीन सबसे ज्यादा करीबी पुरुषो का डेरा है।
इसीलिए नफरत का गुबार सा बन गया है।
किसी को भी मै माफ़ नहीं कर पाऊंगी कभी भी नहीं,
इस दुनियां में ही इंसाफ हो रहा है। होते देखा है मैंने,
मेरे भोले से फूल से मन को कितना कुचला गया है।
बहुत कुछ होता है जो हम कह नही सकते, लिख नही सकते पर खुद की जिंदगी को करीब से जानने का बेहतर तरीका है लिखना लिख कर निकालना।
समय बदलता है, और बदलेगा सुख नही टिकता तो दुख भी नही टिकेगा।
संघर्ष
जीवन कब बदलता चला गया पता ही नहीं चला,
कभी दुकान तक जाने में डरने वाली लडकी कैसे -कैसे संघर्षों से भिड़ती चली गई।
वो तो बस मै ही जानती हूं। खुद को कहां से कहां तक अपडेट किया है।
जो पुरानी रोमा को जानते थे वो इस रोमा को पहचान भी नही पाते बोल्ड और बिंदास होने का सफर ,
सरकारी स्कूल में ही पढ़ी हूं मैं और आज जहां देखती हूं खुद को बहुत फक्र होता है।
खुद पर, इन मुसीबतों अपडेट रहने में और संघर्ष की इस लड़ाई में जो एक काम और सीखा पैसा कमाना।
खूब कमाया खूब गंवाया इसी से पता चला बिजनेस माइंडसेट कितना भरपूर है मुझमें, अच्छा भी लगता है।
खुद की ही काबिलियत से हूं जो हूं कोई साथ देने वाला नही था।
न सब कुछ थाली में परोसा हुआ मिला इन सब चीजों के लिए धन्यवाद ईश्वर का 🙏
संघर्ष जारी है….
ईश्वर सुनो तुम
जिंदगी जब दी थी तो सजा देने को दी थी,
क्यों नही ले लेते तुम उदासियां मेरी ,
शिकायते नही करती मै तुमसे क्योंकि तुम सुनते नही,
बहरे हो शायद!
दिया तो बहुत कुछ था तुमने पर छीनने में भी कोई कमी नही की,
वो उम्मीद का दिया जलाते ही क्यों हो , जिसको जलाए रख नही सकते तुम,
मै मरना चाहती हूं। तो जिंदा रख छोड़ा है, जो जीना चाहते हैं। उनको मार रहे हो।
सही काम कब किया है तुमने?
इंसान की ये आदत भी तुमसे ही आई होगी शायद,
कुछ तो सुन लिया करो कभी ….
जिंदगी हार जीत का सीधा सा फ़लसफ़ा है। बहुत कम उम्र मम्मी को खोने के बाद उस ममता की छाँव फिर कभी नही मिली न मिला वो प्यार जिसकी बातें तो हमेशा सुनी थी पर अनुभव नही था। पति के लिए प्यार मेरा जिस्म था। मेरी भावुकता से उसे कोई मतलब नही था । धीरे धीरे उस जिस्म की नोचा खसोठ से दिल भर गया। 3 बार खुद को एक बार बच्चे के साथ खुद को खत्म करने की कोशिश की ,
समझने वाला उस वक्त भी कोई नही था । अब भी कोई नही है। बस खुद का साथ मुझे इतना पसंद कभी नही आया न भीतर कोई शांति थी। 2019 से खुद के अवसाद पर काम करते करते खुद के साथ जीना सीख लिया है। खुद को खुश रखना मुझसे ज्यादा कोई नही जानता न अब किसी की जरूरत है।
लोगों साथ मतलब निराशा का साथ बस ये पता चल गया है।
आत्मा….
जिस की ख़ातिर मैने अपनी आत्मा को बदल दिया , वो शख्स जब पलट कर बोल देता है।
किया ही क्या है? तुमने उस पल से ज़्यादा और क्या ही तकलीफ़ दे सकता है।
किसी ने अपने घर से इज्जत देकर निकाल दिया था। किसी ने बेइज्जत करके निकलने को बोल दिया।
इस दर्द में कितना दर्द है। कौन समझ ही सकता है। तकलीफ़ उस औरत की जिसको मजबूर किया गया है।
कभी बेटी , कभी माँ , कभी बीवी , कभी बहन के नाम पर ।
सारी तकलीफों के बाद भी लोग सोचते हैं। कि ये खुश नही रह सकती ।
खुश हो दिखने और खुश होने में बहुत अंतर होता है।
इस समाज का पुरुष इमोशनल नही होता है।
वो सिर्फ औरत का जिस्म जानता है। कभी मजे के लिए कभी मारने के लिए।
तकलीफ़ इतनी की जिया भी न जा सके, और जीना ऐसे की जिया भी नही जा सके ।
आत्मा को झकझोर देने के लिए वो अकेला ही काफी है।
पर औरत भी बहुत बेशर्म होती है कोख़ से ही लड़ती हुई आती है। लड़ते हुए ही जिंदगी जी जाती है।
इस दर्द के साथ मरना ही बहुत कठिन है। जीना कहाँ से आसान होगा।….
पिता
पिता से बहुत नाराज़गी होती है कई बार ,
क्योंकि वो हमेशा खुद की ही चलाते थे ,
बचपन से बहुत से फर्क देखें जब इंग्लिश मीडियम स्कूल में दोनों बच्चों में से एक को पढ़ाना तो उन्होंने भाई को चुना , मुझे कन्या विद्यालय में पढ़ाया गया , बहुत गुस्सा आती थी हमेशा क्योंकि मैं खुद को जानती थी कि कहां तक जा सकती हूँ।
आज अपने फैसले पर खुद ही पछतावा होता है उन्हें ।
जब आगे पढ़ने के लिए बोला तो उन्होंने शादी के लिए कितना प्रेशर बनाया। दिल मे दर्द हमेशा रहता है।
पर जीवन की इन कमियों ने मुझे स्ट्रांग बनाया , और मैं हारना नही सीखी इसी वजह से खुद को खुद के बल पर देखा आज जहाँ भी हूँ बहुत मजबूत हूँ।
पर पिता से नाराज़गी के बावजूद भी एक प्यार हमेशा रहा उनके लिए सम्मान रहा , जो उस बेटे के अंदर नही है, जिसको वो सब दे के बैठ गए हैं।
पिता से हर बेटी का एक खूबसूरत रिश्ता होता है। जो दूर होते हुए भी कायम रहता है बहुत सी भावनाओं का खेल चलता है दिमाग मे जो खत्म नही होता….
शौक़
ख़ुद के लिए जीना सीख रही हूं मैं ,
अब खुद को पढ़ना शुरू किया है ,
तुमको पढ़ने की कोशिश तो बहुत की मैने ,
पर तुम तो समझ आये न मुझे ,
अब खुद को समझना सीख रही हूं मैं ,
बहुत से शौक़ थे बहुत कुछ था करने को ,
अब वो सब करती हूं जो जरूरी है मेरे लिए ,
कभी नदी के किनारे घण्टो बैठ जाती हूँ यूंही ,
पेड़ो की शाखों से लिपट जाती हूँ ,
नही पसंद है शोर दुनिया का मुझे ,
मैं पंछियों की चहचहाहट सुनकर ही खुश हो जाती हूँ ,
हाथों में भरकर रेत को समुंदर के किनारे खाली बैठना कुछ शामों को ,
दुनिया के शोर से कुछ दूर अकेले में रहना है मुझे ,
हां खुद के लिए अब जीना है मुझे ,
आँखों मे समाँ जाए वो दुनिया देखना है मुझे ,
अब भी कुछ शौक़ बाकी हैं मुझमे हां उनको जीना है मुझे ….
कोई क्या ख़ूबी देखता है किसी मे ?
यही प्रश्न गूँजता है जीवन में अब के क्या करा जाए कि कोई शिकायत न हो किसी को किसी से या किसी को मुझसे …..
पर ऐसा तो होता नही शायद अपने आपको पूर्ण मानने का अहंकार सबमे ही भरा होता है , इसीलिए कोई भी किसी से खुश नही होता , कोई किसी मे कोई ख़ूबी नही देखता ….
किसी की कोई भी खासियत ज्यादा दिन तक प्रभावित नही करती लोग हाल पूछने का दिखावा भरपूर करेंगे साथ कोई नही मिलेगा जिंदगी ऐसी ही होती है शायद अब बर्दाश्त नही होता मतलबी दुनिया का साथ , मेरे पास खोने को कुछ भी नही है न पाने की आशा फिर भी एक टीस सी रहती है मन मे ….
ये जिंदगी तो अधूरी ही रही पूरी होने की कोई उम्मीद भी दिखती जिये जाना है जब तक मौत का दिन न आये…..
दिल भर सा गया है अब इस बेमानी दुनिया से …..